एक व्यक्ति अपने जीवन में सबसे ज्यादा
दुरुपयोग ‘स्वाभिमान’ का करता है. स्वाभिमानी होने की बजाय लोग ‘स्वाभिमान’ का ढोल
पीटकर ही खुश हो लिया करते हैं. यह एक तरह से उनकी परपीड़क प्रवृति का प्रगटन ही
हैं, लेकिन ऐसे महानुभावों को इससे फर्क ही नहीं पड़ता. जिज्ञासा होती है कि जो
अपने स्वाभिमान की इतनी दुहाई देते हैं, वे हर समय खुद को पीड़ित / शोषित दिखाने के
लिए बेचैन और उतावले क्यों रहते हैं?
स्वाभिमानी व्यक्ति अपने स्वाभिमान की
रक्षा के साथ-साथ यह भी ख्याल रखेगा कि उसकी वजह से किसी और का स्वाभिमान न आहत
हो. स्वाभिमान का ढोल पीटने वाले दूसरों के स्वाभिमान की न सिर्फ धज्जियाँ उड़ाते
हैं बल्कि अपने करीबियों तक में मजाक का पात्र बनकर रह जाते हैं.
स्वाभिमानी हर हाल, परिस्थिति में अपना
स्वाभिमान बनाए / बचाए रखेगा. न खुद वह अपने स्वाभिमान से खेलेगा और न ही किसी और
को खेलने देगा. लेकिन आजकल अपने और दूसरों के स्वाभिमान से खेलने वालों की होड़
आसानी से अपने चारों ओर देखी जा सकती है.
अनुसंधानों के मुताबिक स्वाभिमान की
दुहाई देने वाले लोग अक्सर या तो कायर होते हैं या फिर क्रूर. हिम्मती व्यक्ति या
सहज / सरल हृदय व्यक्ति ही स्वाभिमान की मिसाल होते हैं. हालाँकि उन्हें भी हर उस
बात से दुःख, तकलीफ, पीड़ा होती है या ठेस पहुँचती है, जिससे स्वाभिमान की दुहाई
देने वालों को, लेकिन हिम्मती और सहज/सरल हृदय व्यक्ति कभी अपनी पीड़ा, दुःख, तकलीफ
या आहत होने को प्रदर्शन की वस्तु नहीं बनने देते हैं. वे उस दुःख, पीड़ा, तकलीफ से
उपजे भावों को आत्मसात करते हैं और जिन कारणों से वह दुःख, पीड़ा, तकलीफ हुई है तथा
उन कारकों के हल या समाधान खोजने में जुट जाते हैं. स्वाभिमान की दुहाई देने वाले
दरअसल उस समस्या का समाधान चाहते ही नहीं कि जिससे उन्हें दुःख, तकलीफ या पीड़ा हुई
है या हो रही है, वे पीड़ा ख़त्म नहीं करना चाहते बल्कि पीड़ादायक को पीड़ा पहुंचाने
की जुगत में लगे रहते हैं.
कोई अगर बार-बार स्वाभिमान की दुहाई दे
रहा है या खुद को पीड़ित / शोषित दिखाने पर अमादा है तो आप उससे सावधान हो जाइए. वह
व्यक्ति कभी भी आपके जीवन में संकटों का पहाड़ खड़ा कर सकता है. आप तो स्वाभिमान की
दुहाई नहीं देते न?
(हिन्दी दैनिक 'लोकमत समाचार' में 21 नवम्बर 2020 को प्रकाशित).
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