1985 में एक कहानीकार ने कहानी लिखी 'भैया एक्सप्रेस.' प्रवासी मजदूरों के जीवन-चक्र का वेध लेती इस कहानी का आज के दौर में पाठ को सबके लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए. कोरोना वायरस के नाम पर तालाबंदी और उसके बाद देश भर से मजदूरों के बीच भय और असुरक्षा के निर्माण की प्रक्रिया के मद्देनजर अभी तीन-चार दिन पहले हमने देश की राजधानी आनंदविहार में जो चित्र देखा और इनदिनों देश के सभी हिस्से से प्रवासी मजदूरों के बारे में जो सूचनाएं और ख़बरें आ रही हैं, उनके आलोक में हिन्दी भाषा के अप्रतिम कहानीकार अरुण प्रकाश की कहानी 'भैया एक्सप्रेस' आप भी पढ़िए और कुछ नहीं तो इन मजदूरों की संवेदनाओं से तो जुड़िए... कोरोना वायरस के फैलाव को थामने के लिए सरकार ने तालाबंदी की और रईसों से गरीबों को दरबदर कर दिया... ऊपर जो चित्र है वह देश के अलग-अलग हिस्से में मजदूरों के अपने-अपने घर पहुँचने की तड़प से उपजे कुछ चित्रों का कोलाज है... कहानी - ''भैया एक्सप्रेस'' कहानीकार- अरुण प्रकाश प्रवासी मजदूर की पीड़ा का प्रतीकात्मक अंकन - चित्रकार नामालूम, छायाचित्र साभार- साचीआर्ट्, गू