बदलने से कुछ नहीं बदलता. बदले से तो बिलकुल नहीं. लेकिन यह आदत हमें पूर्वजों से डीएनए में मिली हुई है. मनुष्य बने रहने के लिए बहुत से बदलाव के बावजूद डीएनए का यथावत रहना भी जरुरी होता है. हम मनुष्य होने की राह पर चलते-चलते अक्सर दिग्भ्रमित हो जाने वाली प्रजाति हैं. आदत आड़े आ जाती है. ‘बदलना है नहीं तो बदला लेना है.’ यात्री के दिमाग के इस फितूर का क्या कीजिए. हाँ एक कीमिया है जिससे बदला तक बदल जाता है और वह कीमिया है मुस्कुराहट. मनुष्य होने के लिए मुस्कराहट एक जरुरी असबाब है, जिसे हमें अपने होठों पर ओढ़ना-बिछाना होता है. लेकिन समय की मार इस असबाब को कई बार इतना भारी बना देती है कि इसका होना बोझ बन जाता है तो कई बार इसका होना संवाहक के प्रति संदेह और संशय की उत्पत्ति का कारक. हालाँकि यह भी सच है कि मुस्कुराते रहने से वक़्त बदल जाता है, उनके लिए भी कि जिनके लिए वक़्त खुद ही कोई पैमाना नहीं बना पाया. तमाम प्रतिकूलताओं और संकटों के बावजूद होठों पर मुस्कुराहट का ओढ़ना-बिछाना चलता रहे तो वक़्त तस्लीम करने पर बाध्य हो उठता है और अपने वजूद पर यकीन का कुदरती नुस्खा हम पर नमूदार होने लगता है. मुस्कुरान