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परम्परा ज्ञापन

उजाले की दिशा से आवाज आयी, जो अँधेरे में हैं उन्हें दीये जलाना चाहिए. 

‘किसलिए?’, अँधेरे की तरफ से सवाल पूछा गया. 

उजाले की तरफ से जवाब आया, ‘ताकि मालूम हो सके कि अँधेरे में कौन है, कौन अँधेरे से उबरना चाहता है?’

‘इससे क्या होगा?’ अँधेरे की तरफ से प्रतिप्रश्न हुआ. 

उजाले की तरफ से जवाब की बजाय बड़ी देर तक जब मौन बना रहा तो अँधेरे की तरफ से फिर आवाज उठी, ‘अँधेरे से चाहे जितनी ही रौशनी उठे, वहां उजाला नहीं होने पाता, जानते हो क्यों? क्योंकि अँधेरे में जब रौशनी होती है, रौशनी करने वाले को चिन्हित कर लिया जाता है, फिर उस रौशनी करने वाले को उजाला अपने साथ मिलाकर अपना विस्तार कर लेता है, लेकिन अँधेरा कभी नहीं छंटता है...’

‘हम तुम्हारे आक्रोश को समझते हैं...’ उजाले की तरफ से कहा गया. ‘दिक्कत यही है कि अँधेरा, उजाले को अपना शत्रु समझता है, जबकि हम उजाले इस कोशिश में रहते हैं कि किस तरह से अँधेरे की अवधि समाप्त कर चहुँओर उजाला भर दे..., तुम ठीक कह रहे हो कि हम अँधेरे में उजाला करने वाले को चिन्हित कर लेते हैं और फिर उसे अपने साथ मिलाकर अपना विस्तार करते हैं..., लेकिन कभी सोचा है तुमने कि यह हम किसके लिए करते हैं! हम अँधेरे में उजाला करने वाले को अपनी ओर मिलाकर अपना वजूद बढ़ा रहे हैं तो क्या इससे अँधेरे का वजूद नहीं घट रहा! आखिर हम किसकी तरफ अपना विस्तार कर रहे हैं? अँधेरे की ही तरफ न? अगर अँधेरे से लगातार रौशनी होती रहे तो उजाले का विस्तार कितनी जल्दी-जल्दी होने लगेगा और वह दिन बहुत जल्दी आ जाएगा, जब उजाला, अँधेरे के हर हिस्से में अपना विस्तार कर लेगा..., आख्रिर हमारी तरह सकारात्मक क्यों नहीं सोचते? क्यों अँधेरे में रौशनी करने वालों को रौशनी नहीं करने देते..., क्यों अपने ही शत्रु आप बने रहना चाहते हो’

उजाले की तरफ से उठाए गए सवाल के जवाब में अँधेरे की तरफ से कुछ नहीं कहा गया, बस रौशनी हुई और अब रौशनी करने वाले की पहचान हो रही है...

 

(महाराष्ट्र एवं मध्यभारत के प्रमुख हिन्दी अख़बार 'लोकमत समाचार' में 14 नवम्बर 2020 को प्रकाशित). 


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