अब तक मौन साधना में प्रवृत्त रहा हूँ. साधना अभी भी मौन ही जारी रहेगी. किन्तु अब सृजन मुखर होगा. अभी तक कभी इस ओर तवज्जो नहीं दिया. अब दूँगा. लिखूँगा. सतत लिखूँगा. जो भी लिखूँगा, सोचूँगा, वह इस मंच पर लगातार प्रकाशित करता रहूँगा. एक लेखक अपने पाठकों से सम्वाद साधता रहता है. मेरे लिए आप पाठकों तक पहुँचने, आपसे सम्वाद करने का यही सशक्त और सही माध्यम होगा. यहाँ जो प्रकाशित होगा, सम्भव हुआ तो वही पत्रिका 'फाल्गुन विश्व' के स्वरूप में भी हर सप्ताह छपा करेगा. बहरहाल, यही अभी योजना-रूप में ही है. इस मंच पर सतत लेखन अब एक निरंतर गतिशील रहने वाली प्रक्रिया होगी. लेखन के छत्तीस वर्ष; लेकिन तीन किताबें भी नहीं, फिर क्या लिखा? सुबह-सुबह आज खुद से ही यह सवाल किया. जो जवाब पाया उससे हौंसला और बढ़ गया. मैं यह समझ पाया कि लेखन के नहीं सृजन के छत्तीस वर्ष पूर्ण हो रहे हैं. बीते साढ़े तीन दशक से भी ज्यादा समय से मैं अपना सृजन जीता भी रहा हूँ. जीने में लगा रहा इसलिए तो किताबें नहीं छपा पाया. जीने का, जीवन का अपना वर्तुल होता है, जब तक वह वर्तुल पूर्ण नहीं होता, आप सृजन के दूसरे स्तर की तरफ नहीं बढ़त