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लोकमत समाचार में प्रकाशित स्तम्भ 'मन-नम' से कुछ भाग...

 सवाल-जवाब : एक 


सवाल - जवाब : दो 



अकेला 


उलूक भय 




संक्रांति 



नया साल और नैनूलाल 



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साप्ताहिक फाल्गुन विश्व का प्रकाशन आरंभ...

पत्रिका फाल्गुन विश्व का पुनर्प्रकाशन शुरु हो गया है. पत्रिका अब साप्ताहिक स्वरुप में प्रकाशित हुआ करेगी. पत्रिका पढ़ने के इच्छुक नीचे दिए लिंक से डाउनलोड कर पीडीऍफ़ स्वरुप में पत्रिका पढ़ सकते हैं. https://drive.google.com/file/d/1TOJhqAN_g7V6cH74x9XpoKodG4PCHFNC/view?usp=sharing

सोशल डिस्टेंसिंग बनाम फिजिकल डिस्टेंसिंग : मंशा समझिए

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में फिजिकल डिस्टेंसिंग का उल्लेख और इसे ही इस्तेमाल करने की सिफारिश  नॉवेल कोरोना वायरस के नाम पर जबसे भारत सरकार की तरफ से आधिकारिक बयान आने लगे और मीडिया में COVID-19 नामक इस वायरस को कुख्यात करने का खेल शुरु हुआ, तबसे एक शब्द बारम्बार प्रयोग किया जा रहा है और वह शब्द है, 'सोशल डिस्टेंसिंग*.' इस शब्द को जब मैंने पहली बार सुना तबसे ही यह भीतर खटक रहा था, वजह सिर्फ इतनी ही नहीं कि भाषा और साहित्य का एक जिज्ञासु हूँ, बल्कि इसलिए भी कि इस शब्द में  विद्वेष और नफरत की ध्वनि थी / है. मैंने दुनिया भर की मीडिया को सुनना- समझना शुरु किया. चीन कि जहाँ नॉवेल कोरोना वायरस का प्रादुर्भाव हुआ और जहाँ से पूरी दुनिया में फैला, वहाँ के शासकों और वहाँ के बाजार ने 'सोशल डिस्टेंसिंग' शब्द का इस्तेमाल किया, इटली ने किया, ईरान ने किया, अमेरिका धड़ल्ले से कर रहा है. भारत सरकार के समस्त प्रतिनिधि, तमाम मीडिया घराने और उनके कर्मचारी, देश भर के अख़बार, आमजन और बुद्धिजीवी सभी 'सोशल डिस्टेंसिंग' शब्द का चबा-चबाकर खूब इस्तेमाल कर र